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अपने सपने जरूर पूरे करें -इंदिरा नूयी


मेरी 12 साल की बेटी ने मुझसे कहा, ‘मां, आप अपने सपने पूरे करो। मैं आपके साथ हूं।’ आज भी उसके शब्द मेरे कानों में गूंजते हैं। मैं आप सबसे कहती हूं कि अपने सपने पूरे करने की कोशिश जरूर कीजिए। गलतियों से सबक लें और काम के प्रति पूरी तरह समर्पित रहें। उनकी गिनती अमेरिका की सबसे सफल महिलाओं में होती है। वह दुनिया के सबसे कामयाब प्रोफेशनल्स में से एक हैं। पेप्सिको की सर्वेसर्वा इंदिरा नूयी ने अपनी इस कामयाबी की प्रेरणा अपने जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से ही ली है। यहां पेश है उनका एक संवाद, जिसमें उन्होंने अपनी कामयाबी की राह के बारे में बताया है।
मैं आप सबसे कहती हूं कि सपने देखें और उन्हें पूरे करने की कोशिश करें। मेरी बेटी जब 12 साल की थी, तो उसके स्कूल में हर महीने के पहले बुधवार को एक कार्यक्रम (कॉफी क्लास) होता था। इस कार्यक्रम में बच्चों की मां को बुलाया जाता था। जाहिर है, वर्किंग डे में सुबह ऑफिस की बजाय बेटी के स्कूल जाना मेरे लिए मुश्किल होता था। काफी व्यस्त होने के कारण मैं बेटी के स्कूल नहीं जा पाती थी और इसे लेकर मेरे अंदर एक अपराध बोध था। मैं अंदर ही अंदर इस बात को लेकर बहुत परेशान थी। एक दिन मेरी बेटी ने शिकायत की, ‘मां! आज भी आप मेरे स्कूल में कॉफी क्लास के लिए नहीं आईं।’ मैंने उसे समझाने के लिए कहा, बेटा और भी तो ऐसे बच्चे हैं, जिनकी मां कॉफी क्लास में नहीं आ पाती हैं। मैंने ऐसे कई बच्चों के नाम भी गिनाए। मैं बस अपनी बेटी को यह बताने की कोशिश कर रही थी कि मैं ही सिर्फ इतनी खराब मां नहीं हूं, बाकी महिलाएं भी हैं, जो काम की वजह से बच्चों को कम समय दे पाती हैं। मेरी बेटी चुप हो गई, लेकिन मेरे मन में बेचैनी थी। उस दिन मैं अपने ऑफिस से लौटी और आते ही अपनी बेटी को बुलाकर पूछा, ‘तुम्हें क्या लगता है, मुझे नौकरी छोड़ देनी चाहिए?’ मुझे लगा था कि मेरी बेटी यह सुनकर खुश होगी और कहेगी, हां, यह अच्छा रहेगा। तुम नौकरी छोड़कर मेरे साथ वक्त बिताओ। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। उसने मुझे घूरकर देखा और कहा, ‘मां! आपको क्या हो गया, आप कैसी बातें कर रही हैं, आपने इस जगह तक पहुंचने के लिए कितनी मेहनत की है। आप अपने सपने पूरे कीजिए। मैं ठीक हूं, मेरी चिंता मत कीजिए।’ ध्यान दीजिए, वह बस 12 साल की थी। इतनी छोटी बच्ची के मुंह से यह सब सुनकर मैं हैरान रह गई। मेरी दो बेटियां हैं। आज मैं उनसे कहती हूं, ‘आगे बढ़ो, अपने सपने पूरे करो, मैं तुम्हारे साथ हूं।’  
सफलता के पांच मंत्र
मैंने हमेशा पांच बातों पर जोर दिया। कंपीटेंस, कम्यूनिकेशन, कॉन्फिडेंस, कंसिसटेंसी और इंटेग्रिटी (योग्यता, संवाद, आत्मविश्वास, निरंतरता और ईमानदारी)। आगे बढ़ने के लिए आपको अपनी क्षमताओं को बढ़ाना होगा। अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आत्मविश्वास जरूरी है। खुद पर भरोसा होगा, तभी हम आगे बढ़ पाएंगे। लीडरशिप के लिए जरूरी है कि आप प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी बात दूसरों तक पहुंचा सकें। इसके लिए आपके अंदर स्पष्ट संवाद की क्षमता होनी चाहिए। इसके अलावा आपके अंदर ईमानदारी बहुत जरूरी है। ईमानदारी सफलता का प्रमुख बिंदु है।  
जिन्होंने राह दिखाई
आज मैं जहां भी हूं, वहां तक पहुंचाने में मेरे मेंटोर यानी पथ-प्रदर्शकों का बहुत योगदान रहा है। आपको अपना मेंटोर खोजने की जरूरत नहीं होती है। दरअसल, वे खुद आपको खोज लेते हैं। अगर आप किसी से कहें कि आप मेरे मेंटोर बन जाएं और वह तुरंत राजी हो जाए, तो समझ लीजिए कि वह आपका सच्चा मेंटोर नहीं है। असल में, सच्चा मेंटोर वह है, जो आपके अंदर की क्षमता को समझकर आपका मार्गदर्शन करे। दूसरी बात यह है कि जब आप किसी को अपना मेंटोर बनाते हैं, तो आपको उसकी बात सुननी चाहिए। कई बार वह आपको ऐसे काम के लिए भी कहेगा, जो आपको बहुत मुश्किल लगें, लेकिन अंतत: मेंटोर की बात मानने में ही आपका हित छिपा होता है।  
जीवन के अहम पड़ाव
हर व्यक्ति के जीवन में कुछ ऐसे अहम मोड़ आते हैं, जो जीवन बदल देते हैं। मेरे जीवन में भी ऐसे मोड़ आए, जिन्होंने मेरे जीवन की दिशा बदल दी। मेरा जन्म मद्रास के एक परंपरागत परिवार में हुआ। मेरी मां ने मुझे पढ़ने की छूट दी। उन्होंने मुझे वह काम भी करने की छूट दी, जिसे वह खुद नहीं कर पाई थीं। वह मेरे जरिये अपने सपने पूरे करना चाहती थीं। पर वह एक साधारण घरेलू महिला थीं, इसलिए वह अक्सर कहती रहतीं कि 18 साल की उम्र में एक अच्छा लड़का खोजकर वह मेरी शादी कर देंगी। जब मुझे अमेरिकी विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिली, तो मेरी मां ने मेरे विदेश जाने का विरोध किया। लेकिन वह दिन आया, जब मेरे माता-पिता खुद मुझे अमेरिका भेजने के लिए एयरपोर्ट आए। वह क्षण मेरे लिए टर्निग प्वॉइंट था।  
काम के प्रति समर्पण
जब आप ऑफिस में काम करें, तो आपका पूरा ध्यान काम पर होना चाहिए। अगर आप अपनी व्यक्तिगत समस्या से परेशान हैं, तो आपका मन काम में नहीं लगेगा। ऐसे में, बेहतर है कि आप अपने मन की बात ऑफिस के लोगों के साथ साझा करें, ताकि आपका मन हल्का हो जाए और जब आप काम करें, तो आपका पूरा ध्यान काम पर केंद्रित हो सके। मैंने हमेशा कोशिश की कि मैं अपनी घरेलू समस्याओं की वजह से कभी ऑफिस मीटिंग में अशांत न रहूं। आखिर ऑफिस में काम करने वाले अन्य लोग भी किसी के पिता, मां, भाई, पत्नी या पति तो होते ही हैं। वे आपकी समस्या जरूर समझोंगे। लेकिन आपकी बात में सच्चाई होनी चाहिए। गलतियों से सीखें
गलतियां आपको सबक सिखाती हैं। आपकी हार के पीछे वजह होती हैं आपकी गलतियां। अगर आप असफल नहीं होंगे, तो आप सीखेंगे कैसे? मैंने अपनी गलतियों से बहुत कुछ सीखा है। हारने के बाद निराश न हों। हर विफलता के बाद शांत होकर विचार करें कि आखिर गलती कहां हुई और कोशिश करें कि वह गलती दोबारा न हो। मैं अपने अनुभव से कहती हूं कि गलतियां सबसे होती हैं। मुझसे भी हुईं, मैंने अपनी गलतियों से सीखा और आगे बढ़ गई।
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी 
Source : http://www.livehindustan.com/news/editorial/aapkitaarif/article1-story-57-65-223295.html

Comments

सुन्दर प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें ||
Pallavi saxena said…
प्रेरणात्मक एवं सारगर्भित आलेख....
किसी स्वप्न का साकार होना बहुत-सी बातों का निचोड़ होता है और निचोड़ यदि किसी ऐसे व्यक्ति का हो जिसकी सफलता किसी स्वप्न सरीखी ही हो,तो उसकी बात गंभीरता से सुनी जानी चाहिए।

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