Skip to main content

उकसावे पर बेटे की हत्या को हत्या नहीं माना कोर्ट ने

मदुरै ।। मदास उच्च न्यायालय ने बेटे की हत्या के मामले में 60 साल की विधवा को निचली अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को छह वर्ष के सश्रम कारावास में तब्दील कर दिया है। साथ ही अदालत ने कहा कि इसे हत्या करार नहीं दिया जा सकता,क्योंकि मां की देखभाल करने से लगातार इनकार करते आ रहे बेटे के उकसाने पर महिला ने यह कदम उठाया।

तिरूनेलवेली जिले के अगस्थियारपुरम की निवासी एम पूवाम्मल की आपराधिक याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अदालत की मदुरै पीठ ने इस मामले को गैर इरादतन हत्या में तब्दील कर दिया। इस महिला ने निचली अदालत द्वारा उसे दी गई सजा को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, पूवाम्मल का बेटा एम देवेन्द्रन अपने विवाह के बाद से ही पत्नी के साथ अपनी ससुराल में रह रहा था। पांच अक्तूबर 2007 को अपने पति की मौत के बाद पूवाम्मल ने बहू-बेटे पर अपने साथ रहने के लिए दबाव डाला। लेकिन जब देवेन्द्रन ने उसकी अपील नहीं सुनी तो पूवाम्मल को गुस्सा आ गया और उसने 23 अक्तूबर 2007 को उस पर कुल्हाड़ी से वार किया। बाद में उसने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया और आत्महत्या की कोशिश में खुद को घायल कर लिया।

हाई कोर्ट के मुताबिक इस मामले में पूवाम्मल की ओर से कोई सोची-समझी चाल नहीं थी। उसने गुस्से में अचानक कुल्हाड़ी उठाई। यह स्थिति उसके बेटे ने पैदा की थी। घटना के बाद उसकी पहली प्रतिक्रिया खुद को मारने की थी।
Source : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/11849279.cms

Comments

Popular posts from this blog

माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत

मदर्स डे पर विशेष भेंट  इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा अहमियत वालदैन की है। वालदैन के बाद उनसे मुताल्लिक़ अइज़्जा वा अक़रबा के हुक़ूक़ का दर्जा आता है डाक्टर मोहम्मद उमर फ़ारूक़ क़ुरैशी 1 जून, 2012 (उर्दू से तर्जुमा- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) दुनिया के हर मज़हब व मिल्लत की तालीमात का ये मंशा रहा है कि इसके मानने वाले अमन व सलामती के साथ रहें ताकि इंसानी तरक़्क़ी के वसाइल को सही सिम्त में रख कर इंसानों की फ़लाहो बहबूद का काम यकसूई के साथ किया जाय। इस्लाम ने तमाम इंसानों के लिए ऐसे हुक़ूक़ का ताय्युन किया है जिनका अदा करना आसान है लेकिन उनकी अदायगी में ईसार व कुर्बानी ज़रूरी है। ये बात एक तरह का तर्बीयती निज़ाम है जिस पर अमल कर के एक इंसान ना सिर्फ ख़ुद ख़ुश रह सकता है बल्कि दूसरों के लिए भी बाइसे राहत बन सकता है। हुक़ूक़ की दो इक़्साम हैं । हुक़ूक़ुल्लाह और हुक़ूक़ुल ऐबाद। इस्लाम ने जिस क़दर ज़ोर हुक़ूक़ुल ऐबाद पर दिया है इससे ये अमर वाज़ेह हो जाता है कि इन हुक़ूक़ का कितना बुलंद मुक़ाम है और उनकी अ

माँ की ममता

ईरान में सात साल पहले एक लड़ाई में अब्‍दुल्‍ला का हत्यारा बलाल को सरेआम फांसी देने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. इस दर्दनाक मंजर का गवाह बनने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया था. बलाल की आंखों पर पट्टी बांधी जा चुकी थी. गले में फांसी का फंदा भी  लग चुका था. अब, अब्‍दुल्‍ला के परिवार वालों को दोषी के पैर के नीचे से कुर्सी हटाने का इंतजार था. तभी, अब्‍दुल्‍ला की मां बलाल के करीब गई और उसे एक थप्‍पड़ मारा. इसके साथ ही उन्‍होंने यह भी ऐलान कर दिया कि उन्‍होंने बलाल को माफ कर दिया है. इतना सुनते ही बलाल के घरवालों की आंखों में आंसू आ गए. बलाल और अब्‍दुल्‍ला की मां भी एक साथ फूट-फूटकर रोने लगीं.

माँ को घर से हटाने का अंजाम औलाद की तबाही

मिसालः‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ आज दिनांक 26 नवंबर 2013 को विशेष सीबीाआई कोर्ट ने ‘आरूषि-हेमराज मर्डर केस’ में आरूषि के मां-बाप को ही उम्रक़ैद की सज़ा सुना दी है। फ़जऱ्ी एफ़आईआर दर्ज कराने के लिए डा. राजेश तलवार को एक साल की सज़ा और भुगतनी होगी। उन पर 17 हज़ार रूपये का और उनकी पत्नी डा. नुपुर तलवार पर 15 हज़ार रूपये का जुर्माना भी लगाया गया है। दोनों को ग़ाजि़याबाद की डासना जेल भेज दिया गया है। डा. नुपुर तलवार इससे पहले सन 2012 में जब इसी डासना जेल में बन्द थीं तो उन्होंने जेल प्रशासन से ‘द स्टोरी आॅफ़ एन अनफ़ार्चुनेट मदर’ शीर्षक से एक नाॅवेल लिखने की इजाज़त मांगी थी, जो उन्हें मिल गई थी। शायद अब वह इस नाॅवेल पर फिर से काम शुरू कर दें। जेल में दाखि़ले के वक्त उनके साथ 3 अंग्रेज़ी नाॅवेल देखे गए हैं।  आरूषि का बाप राकेश तलवार और मां नुपुर तलवार, दोनों ही पेशे से डाॅक्टर हैं। दोनों ने आरूषि और हेमराज के गले को सर्जिकल ब्लेड से काटा और आरूषि के गुप्तांग की सफ़ाई की। क्या डा. राजेश तलवार ने कभी सोचा था कि उन्हें अपनी मेडिकल की पढ़ाई का इस्तेमाल अपनी बेटी का गला काटने में करना पड़ेगा?